फ्यूजन के चलन से संगीत से नये श्रोता जुडे- जीतु शंकर, कहा- चक्रधर समारोह ने शास्त्रीय संगीत को पूरे देश में जीवंत रखा है
रायगढ़। शास्त्रीय संगीत वास्तव में संगीत की आत्मा है वो पेड की जड की तरह है जबकि फ्यूजन संगीत पेड के हरे भरे पत्तों हैं। फ्यूजन में संगीत के मिश्रण से कला जगत को नया कलेवर और नई जान मिलती है।
रायगढ़ के ऐतिहासिक चक्रधर समारोह में शिरकत करने के लिये रायगढ़ पहुंचे प्रसिद्ध फ्यूजन कलाकार जीत शंकर ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि रायगढ़ के चक्रधर समारोह ने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में ऐसा मुकाम हासिल किया है। जो आने वाले कई दशकों तक न केवल देश में बल्कि विदेश में भी संगीत को चाहने वालों के दिलों पर खनक पैदा करता रहेगा। इससे पहले भी वे इस समारोह में शिरकत कर चुके हैं। मगर इस बार वे पहली बार न केवल अपने दोनों बेटों ऋषभ व पियूष के साथ मंच पर प्रस्तुती देंगे बल्कि रायगढ़ के श्रोताओं के बीच तीनों का मिला जुला फ्यूजन संगीत श्रोताओं को देखने सुनने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में चक्रधर समारोह ने न केवल रायगढ़ बल्कि छत्तीसगढ़ को नई पहचान दी है और इसकी खुशबू अब देश से बाहर जाकर विदेश में भी गमकने लगी है।
यह पूछे जाने पर की क्या शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन का मिश्रण करने से शास्त्रीय संगीत की आत्मा को प्रभावित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वास्तव में शास्त्रीय संगीत आत्मा की तरह है। जबकि फ्यूजन को आप शरीर के रूप में देख सकते हैं। शास्त्रीय संगीत पेड की जड है तो फ्यूजन उस पेड के हरे भरे पत्ते हैं। इतना जरूर है कि शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन का नया तडका लगने से इस क्षेत्र में देखने सुनने वाले श्रोताओं की संख्या बढी है। जो कहीं न कहीं संगीत के लिये अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि उनका पूरा परिवार शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत जयपुर घराने से जुडा हुआ है और उनके द्वारा या शास्त्रीय संगीत को समझने वाले किसी भी कलाकार के द्वारा शास्त्रीय संगीत की मूल आत्मा का न छेड़कर उसी के भीतर से कुछ नया निकालने का प्रयास ही फ्यूजन संगीत बन जाता है।