हाथी प्रभावित तीन जिलों के सरहदी ग्रामों से घिरा कापू, जान जोखिम में डालकर सीमित संसाधनों के साथ ड्यूटी निभा रहे वनकर्मी
रायगढ़। हाथी मानव के बीच संघर्ष को कम करने हाथी प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में वहां रहने बसने वाले समुदाय की भी अहम भूमिका होती है,उनकी सहभागिता और सहयोग के बिना हाथी मानव द्वंद को केवल वन विभाग के सीमित संसाधनों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। जिस प्रकार जंगल सबका है उसी प्रकार वहां रहने वाले प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी हम सभी मानव जाति का कर्तव्य है।
कापू वन परिक्षेत्र अधिकारी ने बताया की हाथी प्रभावित तीन जिलों के सरहदी इलाकों में अपनी ड्यूटी निभाना किस तरह अपने आप में चैलेंजिंग भरा कार्य है। यहां वन अमला किन विषम परिस्थितियों में ड्यूटी निभा रहे हैं,यहां किस तरह नाना प्रकार की परेशानी सामने आती है और उन समस्याओं को वन अधिकारी कर्मचारी कैसे मैनेज करते हैं,यह बहुत करीब से समझने वाली बात है, रेंज अफसर ने महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए बताया,की वन परिक्षेत्र कापू में बिगत वर्ष 2016 से लगातार हर साल “गौतमी दल” हाथियों का समूह उड़िसा से आकर मैनपाट के तराई वन परिक्षेत्र कापू के जंगल माह जनवारी में आकर माह अगस्त तक याने 08 माह तक विचरण करता है, इसके बाद वापस 04 माह के लिए उड़िसा चला जाता है। अभी बर्तमान में उक्त हाथी दल 13 पहाड़ियों से उतर कर ओडी़सा जाने के लिए 5.5 किलोमीटर की कृषि धान फसल को खाते, रौदते हुए कक्ष क्र.,52 आरएफ छेना पतरा नामक जंगल रकबा 146.15 हेक्टर में 28 सितम्बर से विचरण कर रहा है।
डर से साये करते हैं सफर
हाथी से फसलों की नुकसानी को लेकर ग्रामीण परेशान है हाथियों की मौजूदगी से राहगीर हाथी प्रभावित रास्ते से डरे सहमे सफर तय करने को मजबूर हैं। क्षेत्र में हाथी अपनी भूख मिटाने लगातार गांव की ओर कुच कर रहे है तो वहीं किसान अपनी फसलों को हाथी से बचाने जद्दोजहद कर रहे हैं यह विकट समस्या है।
धरमजयगढ़ वनमण्डल में ही 115 हाथी
धरमजयगढ़ रेंज के 368 कक्ष क्रमांक जंगल मे 12 से 13 के दल में हाथी घूम रहे हैं। वहीं विभागीय जानकारी के अनुसार केवल धरमजयगढ़ के छाल रेंज अंतर्गत 51 हाथी विचरण कर रहें हैं इस तरह पूरे धरमजयगढ़ वनमण्डल क्षेत्र के अलग-अलग जगहों में कुल 115 हाथी घूम रहे हैं जो निसंदेह एक भयावह स्थिति को दर्शा रहा है।